गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008

आसान नहीं रही सचिन के महानायक बनने की राह

सचिन को जिस मुकाम पर आज लोग पाते हैं वह उनकी बरसों की मेहनत का फल है। घंटो रात में मैदान पर टिक कर अभ्‍यास करना यह सचिन की ही बूते का काम है। क्रिकेट की इस सदी के महानायक हैं सचिन। टेस्‍ट क्रिकेट में सबसे ज्‍यादा रन बनाने से कुछ कदमों की दूरी पर अभी सचिन खडें हैं। सचिन का इतिहास बताता है कि उन्‍हें चुनौती देने वालों का हाल क्‍या हुआ है। फिर चाहे वह ओलंगो हो या‍ फिर कोई और।
कमल कान्‍त वर्मा
क्रिकेट के बेताज बादशाह सचिन तेंदुलकर के नाम भले ही बल्लेबाजी के अनगिनत रिकार्ड दर्ज हो गए हों लेकिन उनके लिये यह राह आसान इतनी आसान कभी नहीं रही। इस मुकाम तक आने के लिये सचिन ने घंटो मैदान पर बिताए हैं। तब कहीं जाकर उनको यह मुकाम हासिल हुआ है। उनके करीबी मित्र और पूर्व क्रिकेटर प्रवीण आमरे उस दौर के साक्षी रहे हैं जब बारह बरस की उम्र में मास्टर ब्लास्टर अकेले घंटों मैदान पर अभ्यास करता रहता था। लागों को लगता है कि सचिन बहुत आसानी से इस मुकाम तक पहुंचा है। लेकिन वह बखूबी जानते हैं कि उसने कितने पापड़ बेलने पडे हैं। बारह साल की उम्र में वह एक एक शॉट सीखने के लिये रात होने तक अकेला मैदान पर डटा रहता था जबकि बाकी सारे लड़के घर लौट जाते।
आमरे मुंबई के शारदाश्रम विद्या मंदिर में सचिन के साथी रहे है। क्रिकेट के छात्र से मास्टर बनने का सचिन का सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा है। बचपन से ही एक साथ रहने वाले आमरे को लगता था कि सचिन एक दिन जरूर क्रिकेट का महानायक बनेगा। उसका अनुशासन जुनून और दबाव में अच्छा खेलने की कला बचपन में ही जाहिर हो गई थी। आज सचिन टेस्ट क्रिकेट में ब्रायन लारा का सर्वाधिक 11953 रन का विश्व रिकार्ड तोड़ने से महज 15 रन दूर खड़े हैं। सचिन कल से मोहाली में आस्ट्रेलिया के खिलाफ शुरू हो रहे दूसरे टेस्ट में यह मुकाम हासिल कर सकते हैं। आमरे मानते हैं कि फिलहाल सचिन का ध्यान रिकार्ड पर नहीं बल्कि श्रृंखला पर होगा। आमरे खुद भी एक अच्‍छे क्रिकेटर है।
वह उन चंद खिलाडियों में शुमार है जिन्‍होंने अपने करियर के पहले ही टेस्‍ट में शतक ठोका है।
सचिन कभी रिकार्ड के बारे में नहीं सोचता। उन्‍हें इस पर पूरा यकीन है कि वह इस समय टीम की जीत के बारे में ही सोच रहा होगा। आमरे के मन में अभी भी वो बचपन की यादें ताजा हैं। उन्होंने कहा आचरेकर सर तेंदुलकर के बचपन के कोच रमाकांत का अर्जुन था सचिन। सर उसे हर नाबाद पारी के लिये एक रूपये का सिक्का देते थे और उसका विकेट लेने वाले गेंदबाज को भी एक रूपया मिलता था। सचिन के लिये सर से मिले वह सिक्के आज भी उसकी सबसे कीमती धरोहर है। सचिन को अपनी चीजों को सीखने की ललक इतनी थी कि एक बार किसी ने उन्‍हें टेबिल टैनिस में जीतने के लिये चुनौती दे डाली। फिर क्‍या था सचिन ने टेबिल टेनिस को सीखने में करीब छह महीने का वक्‍त लिया।
छह महीने कड़ी मेहनत के बाद सचिन ने उस लडके को टेबिल टेनिस में धूल चटाई। यही चीज आज भी उनके अंदर जिंदा है। आज भी जब कभी कोई उन्‍हें चुनौती देता है तो वह खामोश रहते हैं मगर उनका बल्‍ला उन्‍हें जवाब देता है। ऐसा ही कुछ हुआ था गेंदबाज ओलंगो के साथ भी। आमरे ने तेंदुलकर के बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया लेकिन जल्दी कैरियर खत्म होने के कारण वह बाद में मुंबई रणजी टीम के कोच बन गये जिसके लिये सचिन भी खेलते हैं। तेंदुलकर की बल्लेबाजी पर गहरी नजर रखने वाले आमरे ने इतने बरस में उनकी शैली में आये बदलावों के बारे कहते है कि दो दशक तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने पर बदलाव आना लाजमी है।
सचिन ने अलग अलग विकेटों के मुताबिक खुद को ढाला है और यही वजह है कि वह दुनिया भर में वह रन बना सका है। सौरव गांगुली के बाद सचिन के क्रिकेट से संन्यास की अटकलों के बारे में उन्होंने कहा कि यह फैसला इस चैम्पियन बल्लेबाज पर ही छोड़ देना चाहिये। सचिन ने क्रिकेटप्रेमियों को खुशी के इतने पल दिये हैं। वह अपने खेल का मजा ले रहा है और उसे ही यह तय करने देना चाहिये कि कब तक उसे खेलने में लुत्फ आ रहा है। उसे अपनी मर्जी से संन्यास का फैसला लेने की सहूलियत दी जानी चाहिये।