रविवार, 2 नवंबर 2008

ऐसा विदाई समारोह पहले कभी देखने को नहीं मिला


अपने साथी खिलाडियों की बाहों में में बैठे अनिल कुंबले के चेहरे की मुस्‍कान उनकी इस विदाई समारोह की पूरी तरह से हकदार थी। यह विदाई उस जंबो की थी जिसने अपने दम पर भारत को कई बार जीत दिलाई थी। भारतीय क्रिकेट खिलाडियों ने जब इस विशाल दिलवाले जंबो को अलविदा कहा तो जंबो की आंखें भी कहीं छलक आंई।

कमल कान्‍त वर्मा



फिरोजशाह कोटला के मैदान की घड़ी में अभी करीब 3:05 मिनट का समय रहा होगा। मैदान में कुछ सन्‍नाटा छाया था। भारतीय खिलाडी कतार में खडे होकर किसी का इंतजार कर रहे थे। अचानक माहौल बदला और तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा स्‍टेडियम गूंज उठा। जिसका खिलाडि़यों को इंतजार था वह शख्‍स पवेलियन से निकलकर मैदान की तरफ बढ़ रहा था। यह थे भारतीय टेस्‍ट टीम के कप्‍तान अनिल कुंबले। प्‍यार से जंबों के नाम से मशहूर इससे पहले इसी फिरोजशाह कोटला मैदान पर अपनी रिटायरमेंट का ऐलान कुछ देर पहले ही कर चुके थे। ऐसी विदाई की उम्‍मीद शायद ही किसी भारतीय खिलाड़ी ने की हो। भारतीय क्रिकेट में विकेट के बादशाह को जो विदाई मिली वह शायद ही इससे पहले किसी को मिली हो। यही था जंबो का रूतबा। भारतीय क्रिकेट के इतिहास में पहला मौका था जब किसी खिलाड़ी और कप्‍तान ने इस तरह से मैदान पर अपनी रिटायरमेंट का ऐलान किया हो। यह पल भारतीय टीम के लिये भावुकता से भरा था। वह एक ऐसे खिला‍डी को विदाई दे रहे थे जो अपने अके‍ले के दम पर भारतीय टीम को जीत का सहरा पहनाने की हिम्‍मत रखता था।

1990 में अपने करियर का आगाज करने वाले अनिल कुंबले ने जब अपनी आंखों पर चश्‍मा लगा कर गेंदबाजी संभाली थी तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह शख्‍स 18 साल तक क्रिकेट से जुड़ा रहकर इतनी बु‍लंदियों को छू लेगा। चेहरे पर कुछ दमदार मुंछे अनिल कुंबले की पहचान हुआ करती थी। मगर पहले चश्‍मा गायब हुआ फिर मूंछे और सामनें था अनिल कुंबले का एक नया रूप एक नया नाम जंबो। भला कौन भूल सकता है कुंबले के वो दस विकेट जो इसी मैदान पर पाकिस्‍तान के खिलाफ उन्‍होंने लिये थे। यह भारत के लिये पहला मौका था जब किसी भारतीय ने एक ही पारी में दस विकेट लिये हों। जिम लेकर के 1956 में बनाए रिकार्ड को तोड़ने वाले जंबो दुनिया के दूसरे ऐसे खिलाड़ी बने जिसने एक ही पारी में इतनी विकेट ली हों। तभी तो जंबो जंबो हैं। आज भी कुंबले की विदाई का गवाह यही मैदान बना। शायद इसकी वजह उनकी चोट या फिर वही दस विकेट रहे हों। अजहर की कप्‍तानी में इसी फिरोजशाह कोटला मैदान पर कुंबले ने पाकिस्‍तान के खिलाफ दस विकेट लेकर जो इतिहास रचा वह आज भी कायम है। इस खिलाड़ी की विकेट की भूख कभी कम होती दिखाई नहीं दी।

ऑस्‍ट्रेलिया के खिलाफ उनकी सबसे ज्‍यादा विकेट रहीं हैं। 2004 में सिडनी में ऑस्‍ट्रेलिया के खिलाफ उन्‍होंने एक ही पारी में आठ विकेट चटकाई थीं। 619 टेस्‍ट विकेट अपनी झोली में डालने वाले कुंबले के नाम कई रिकॉर्ड दर्ज है। कुंबले ने क्रिकेट को अपना सौ फिसदी प्रदर्शन दिया है। भला वेस्‍टइंडीज की वह पारी कौन भूल सकता है जब कुंबले अपना जबड़ा टूटने के बाद मुंह पर पटटी बांधकर मैदान पर आए थे और लारा का विकेट ले उड़े थे। मुंह खुलने में दर्द का एहसास उनके चेहरे पर था फिर भी उनके चेहरे से विकेट लेने की खुशी हटी नहीं थी। फिरोजशाह का यह तीसरा टेस्‍ट मैच भी कुछ ऐसा ही रहा जब कभी कंधे के दर्द से कुंबले को बाहर बैठना पड़ा तो कभी उंगली के फट जाने के कारण मैदान से मजबूरन जाना पड़ा। मगर इन सभी के बाद टीम में शामिल होकर टीम की हौंसला अफजाई करना वह कभी नहीं भूले तभी तो उंगली में ग्‍यारह टांके लगने के बाद भी मैदान में आकर उन्‍होंने ना सिर्फ बॉंलिंग ही की बल्कि कैच भी लपका बिना यह परवाह किये कि डॉक्‍टर ने उन्‍हें गेंदबाजी करने से मना किया है। यह जज्‍बा जंबो का ही हो सकता है।

भारत में उनकी बराबरी करने वाला कोई गेदबाज नहीं है। कुंबले ने जिन खिलाडियों के सा‍थ अपना सफर शुरू किया था वह भले ही आज मैदान से बाहर हों मगर उनकी गेंदबाजी का कायल हर कोई है। फिर चाहे वह अहजर, कपिल, रविशाश्‍त्री हों या कोई और। फिरोजशाह के मैदान पर आज का नजारा जंबो के लिये हमेशा यादगार बनकर उनके दिल और दिमाग में बसा रहेगा। अपनी बॉलिंग में बेहद आक्रामक दिखाई देने वाले कुंबले अपने स्‍वभाव से बेहद नरम हैं। इस नरम दिल स्‍वभाव वाले व्‍यक्तित्‍व को पूरी दुनिया में क्रिकेट खिलाड़ी बेहद प्‍यार करते हैं। अब जब क्रिकेट के मैदान पर दर्शक उनकी बॉलिंग का जादू नहीं देख पाएंगे तो एक कमी तो जरूर रहेगी ही। जंबो ने अपने प्रदर्शन के दम पर सबसे ज्‍यादा बार भारत को जीत दिलाई है। दुनिया में सबसे ज्‍यादा टेस्‍ट विकेट लेने वाले कुल तीन खिलाडियों में जंबो तीसरे नम्‍बर पर है। कुंबले के रिकॉर्ड की बराबरी करना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिये किसी भी खिला‍ड़ी को कुंबले ही बनना होगा, तभी वह इसको अंजाम दे सकेगा। अपने इस आखिरी मैच के बाद उनके इस विदाई समारोह में ना सिर्फ वहां मौजूद खिलाड़ी शामिल हुए बल्कि पूरे खेल प्रेमी इसमें शामिल थे। मैदान में अपनी साथी खिलाडियों की बाहों पर बैठे जंबो का हर दर्शक ने खडे होकर अभिवादन किया और उनके योगदान को सराहा।

गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008

आसान नहीं रही सचिन के महानायक बनने की राह

सचिन को जिस मुकाम पर आज लोग पाते हैं वह उनकी बरसों की मेहनत का फल है। घंटो रात में मैदान पर टिक कर अभ्‍यास करना यह सचिन की ही बूते का काम है। क्रिकेट की इस सदी के महानायक हैं सचिन। टेस्‍ट क्रिकेट में सबसे ज्‍यादा रन बनाने से कुछ कदमों की दूरी पर अभी सचिन खडें हैं। सचिन का इतिहास बताता है कि उन्‍हें चुनौती देने वालों का हाल क्‍या हुआ है। फिर चाहे वह ओलंगो हो या‍ फिर कोई और।
कमल कान्‍त वर्मा
क्रिकेट के बेताज बादशाह सचिन तेंदुलकर के नाम भले ही बल्लेबाजी के अनगिनत रिकार्ड दर्ज हो गए हों लेकिन उनके लिये यह राह आसान इतनी आसान कभी नहीं रही। इस मुकाम तक आने के लिये सचिन ने घंटो मैदान पर बिताए हैं। तब कहीं जाकर उनको यह मुकाम हासिल हुआ है। उनके करीबी मित्र और पूर्व क्रिकेटर प्रवीण आमरे उस दौर के साक्षी रहे हैं जब बारह बरस की उम्र में मास्टर ब्लास्टर अकेले घंटों मैदान पर अभ्यास करता रहता था। लागों को लगता है कि सचिन बहुत आसानी से इस मुकाम तक पहुंचा है। लेकिन वह बखूबी जानते हैं कि उसने कितने पापड़ बेलने पडे हैं। बारह साल की उम्र में वह एक एक शॉट सीखने के लिये रात होने तक अकेला मैदान पर डटा रहता था जबकि बाकी सारे लड़के घर लौट जाते।
आमरे मुंबई के शारदाश्रम विद्या मंदिर में सचिन के साथी रहे है। क्रिकेट के छात्र से मास्टर बनने का सचिन का सफर काफी संघर्षपूर्ण रहा है। बचपन से ही एक साथ रहने वाले आमरे को लगता था कि सचिन एक दिन जरूर क्रिकेट का महानायक बनेगा। उसका अनुशासन जुनून और दबाव में अच्छा खेलने की कला बचपन में ही जाहिर हो गई थी। आज सचिन टेस्ट क्रिकेट में ब्रायन लारा का सर्वाधिक 11953 रन का विश्व रिकार्ड तोड़ने से महज 15 रन दूर खड़े हैं। सचिन कल से मोहाली में आस्ट्रेलिया के खिलाफ शुरू हो रहे दूसरे टेस्ट में यह मुकाम हासिल कर सकते हैं। आमरे मानते हैं कि फिलहाल सचिन का ध्यान रिकार्ड पर नहीं बल्कि श्रृंखला पर होगा। आमरे खुद भी एक अच्‍छे क्रिकेटर है।
वह उन चंद खिलाडियों में शुमार है जिन्‍होंने अपने करियर के पहले ही टेस्‍ट में शतक ठोका है।
सचिन कभी रिकार्ड के बारे में नहीं सोचता। उन्‍हें इस पर पूरा यकीन है कि वह इस समय टीम की जीत के बारे में ही सोच रहा होगा। आमरे के मन में अभी भी वो बचपन की यादें ताजा हैं। उन्होंने कहा आचरेकर सर तेंदुलकर के बचपन के कोच रमाकांत का अर्जुन था सचिन। सर उसे हर नाबाद पारी के लिये एक रूपये का सिक्का देते थे और उसका विकेट लेने वाले गेंदबाज को भी एक रूपया मिलता था। सचिन के लिये सर से मिले वह सिक्के आज भी उसकी सबसे कीमती धरोहर है। सचिन को अपनी चीजों को सीखने की ललक इतनी थी कि एक बार किसी ने उन्‍हें टेबिल टैनिस में जीतने के लिये चुनौती दे डाली। फिर क्‍या था सचिन ने टेबिल टेनिस को सीखने में करीब छह महीने का वक्‍त लिया।
छह महीने कड़ी मेहनत के बाद सचिन ने उस लडके को टेबिल टेनिस में धूल चटाई। यही चीज आज भी उनके अंदर जिंदा है। आज भी जब कभी कोई उन्‍हें चुनौती देता है तो वह खामोश रहते हैं मगर उनका बल्‍ला उन्‍हें जवाब देता है। ऐसा ही कुछ हुआ था गेंदबाज ओलंगो के साथ भी। आमरे ने तेंदुलकर के बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया लेकिन जल्दी कैरियर खत्म होने के कारण वह बाद में मुंबई रणजी टीम के कोच बन गये जिसके लिये सचिन भी खेलते हैं। तेंदुलकर की बल्लेबाजी पर गहरी नजर रखने वाले आमरे ने इतने बरस में उनकी शैली में आये बदलावों के बारे कहते है कि दो दशक तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने पर बदलाव आना लाजमी है।
सचिन ने अलग अलग विकेटों के मुताबिक खुद को ढाला है और यही वजह है कि वह दुनिया भर में वह रन बना सका है। सौरव गांगुली के बाद सचिन के क्रिकेट से संन्यास की अटकलों के बारे में उन्होंने कहा कि यह फैसला इस चैम्पियन बल्लेबाज पर ही छोड़ देना चाहिये। सचिन ने क्रिकेटप्रेमियों को खुशी के इतने पल दिये हैं। वह अपने खेल का मजा ले रहा है और उसे ही यह तय करने देना चाहिये कि कब तक उसे खेलने में लुत्फ आ रहा है। उसे अपनी मर्जी से संन्यास का फैसला लेने की सहूलियत दी जानी चाहिये।

शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

वर्ल्‍ड कप को वो आखिरी ओवर

आईसीसी के टी-20 वर्ल्‍डकप की जीत को एक साल पूरा हो गया है। मगर इस मैच की याद आज भी भारत और पाकिस्‍तान के क्रिकेट प्रेमियों के जहन में ताजा है। मिसबाह को आज भी टी-20 फाइनल का वो आखिरी ओवर याद है। एक कैच ने इस मैच का रूख ही पलट कर रख दिया।

कमल कान्‍त वर्मा

टी-20 का वर्ल्‍ड कप फाइनल और आमने सामने चित परीचित अंदाज में भिडने वाली भारत और पाकिस्‍तान की टीमें। यह शाम इस वर्ल्‍ड कप के लिये बेहद अहम थी। पाकिस्‍तान जीत से सिर्फ 12 रन दूर था। मैच का आखिरी ओवर और खिलाडियों के साथ-साथ दर्शकों के माथे पर लकीरें साफ दिखाई दे रहीं थीं। किसी के हाथ भारत की जीत के लिये उठे तो किसी के पाकिस्‍तान की जीत के लिये। जोहन्‍सबर्ग के इस स्‍टेडियम ने दर्शकों में इतना उतावला पन शायद पहले कभी नहीं देखा हो। क्रीज पर मिसबाह-उल-हक के साथ दूसरे छोर पर मो. आसिफ डटे थे। जीतने का जज्‍बा पूरी तरह से दोनों खिलाडि़यों में दिखाई दे रहा था। वहीं महेन्‍द्र सिंह धोनी आखिरी को इस आखिरी समय में एक अदद अच्‍छे गेंदबाज की जरूरत थी। मिसबाह काफी हद तक जानते थे कि धोनी के पास जोगिंदर सिंह एक विकल्‍प के तौर पर मौजूद है। आखिरी ओवर में 12 रन की जरूरत को पूरा करने के लिये मिसबाह स्‍ट्राइक लेने के लिये पूरी तरह से तैयार थे।

जोगिंदर सिंह अपने ओवर की पहली गेंद फेंकी तो मिसबाह कुछ बीट हुए। इस गेंद के साथ दर्शकों की सांसे कुछ देर के लिये रूकी हुई थीं। धोनी के ज्‍यादातर फील्‍डर बाउंडरी की तरफ निगाह लगाए बैठे थे। जोगिंदर सिंह की दूसरी बॉल के साथ मिसबाह ने पूरी जान से बॉल को खिलाडियों के उपर से उठाकर बाउंडरी के बाहर फेंक दिया। मिसबाह के इस एक शॉट ने भारतीय खेमे में खलबली पैदा कर दी। जहां पाकिस्‍तान के प्रशंशक खुशी से उछल पड़े, तो वहीं भारतीय समर्थकों के चेहरे पर तनाव की लकीरें साफ दिखाई दे रहीं थीं। धोनी ने एक बार फिर जोगिंदर से बात की और अपनी पॉजीशन पर चले गए। जोगिंदर की तीसरी गेंद ने एक बार फिर से भारत की उम्‍मीदों पर पानी फेर दिया। यह बॉल वाईड थी। एक रन के इजाफे ने एक बार फिर से भारत की धडकनें तेज कर दीं। आखिरी ओवर ने वर्ल्‍ड कप के इस फाइनल को बेहद रोमांचक बना दिया था। भारतीय टीम की निगाह मिसबाह पर लगी थी। भारत को तो विकेट चाहिए था या फिर उनके लिये जरूरी था कि बाकी बची गेंदों पर कोई रन ना बन सके। पाकिस्‍तान को जीतने के लिये अब महज पांच रन चाहिए थे।

आखिरी ओवर की तीन बॉल फेंकी जानी बाकी थी। मिसबाह स्‍ट्राइक पर एक बार फिर से अपने आक्रामक मूंड में दिखाई दे रहे थे। जोगिंदर ने अपनी बॉल के लिये दौडना शुरू किया एक बार फिर से धड़कनों का उफान तेज हो गया था। जब तक बॉल ने क्रिज पर टप्‍पा खाया मिसबाह अपनी पॉजीशन मे आ गए थे। मिसबाह ने गेंद को फाईनलेग से स्‍कूप करने के प्रयास किया तो वह उनकी सोच से ज्‍यादा उपर बल्‍ले पर आ गई। नतीजा यह हुआ कि गेंद एक बार फिर से विकेट के पीछे उंची उछल गई। वहां विकेट के पीछे फाईन लेग पर मौजूद श्रीसंत ने इसको आसानी से अपने हाथों में ले लिया। इस एक कैच ने भारत को जहां जीत दिला दी तो वहीं पाकिस्‍तान को पहले टी-20 विश्‍व कप में हार देखनी पड़ी। श्रीसंत के हाथों में कैच जाने से पहले मिसबाह अपना दूसरा रन पूरा करने वाले थे। जैसे ही श्रीसंत के हाथों में बॉल पड़ी वहीं मिसबाह अपने को रोक नहीं पाए। इस कैच के साथ ही मिसबाह अपने बल्‍ले के सहारे पूरी क्रीज पर अकेले बेहद मायूस दिखाई दे रहे थे।

दूसरे छोर पर मौजूद आसिफ, मिसबाह के पास पहुंचे और उन्‍हें दिलासा दी। इस एक शॉट ने पाकिस्‍तान की किस्‍मत ही बदल कर रख दी। धोनी ने इस मैच के साथ अपनी कप्‍तानी को मजबूती दी। मिसबाह को अपने इस शॉट की उम्‍मीद नहीं थी। यह शॉट मिसबाह के लिये कभी ना भूलने वाला शॉट रहा। हाल ही में दिल्‍ली में हुए सुई नोर्दन गैस और दिल्‍ली के बीच हुए मैच के दौरान मिसबाह ने यह बात मानी कि यह शॉट उनके जीवन का ना भूलने वाला शॉट रहा। मगर मिसबाह को इस शॉट को लेने के लिये टीम के किसी सदस्‍य ने उन्‍हें दोष नहीं दिया। इस वर्ल्‍डकप को जीतने के साथ ही भारत ने अपने को वर्ल्‍ड चैंपियन बनाने का सपना भी संजो लिया।

रविवार, 21 सितंबर 2008

क्‍या समस्‍या है भाई

भई रोते चिल्‍लाते काहे हो। जो हो गया सो हो गया। हम तो कहते हैं कि पानी फेरिये तमाम बातों पर। काहे को गोरों पर हर बार इसी तरह का लांछन लगाते हैं। यदि वहां नहीं भी आए तो क्‍या यहां तो आ ही रहे हैं। आने दिजिए। काहे को डराते हैं कि यहां भी हमारी ही सिचुवेशन है।

कमल कान्‍त वर्मा

बम की गूंज तो हर जगह एक सी होती है, फिर क्‍या भारत और पाकिस्‍तान। आखिर मरने वाले इंसानों में क्‍या फर्क हो सकता है। सिवाय इसके की कोई भारत में बम विस्‍फोट की भेंट चढे तो कोई पाकिस्‍तान में। माफ करना भई। यह हम नहीं कह रहे हैं बल्कि यह कहनें वाले पाकिस्‍तानी क्रिकेटर इंजमाम उल हक हैं। तो भई अब हम क्‍या करें। अब इंजमाम को कौन समझाए कि जहां मक्‍खी के छींकनें से ही शोर होकर दहशत फैल जाती हो वहां उन लोगों के लिये बम विस्‍फोट कोई साधारण घटना नहीं है।

उनके लिये यह साधारण घटना हो सकती है कि उनके स्‍कूलों में स्‍कूल के बच्‍चे गोली चला दें। मगर बम। ना बाबा ना। और फिर भाई इंजमाम यदि तुम्‍हें याद हो तो चैंपियंस ट्राफी भी इन्‍हीं बम विस्‍फोट की ही भेंट चढ़ी थी। ना चाहने वालों ने चैंपियंस ट्राफी में ही बम लगा दिया। अब तो गुस्‍सा मत करो भाई। भाई तुम जरा उन खिलाडियों की तो सोचो। उनकी मानसिक हालत के बारे में थोडा तो सोचो। मगर हमारे उपर उंगली मत उठाना। अब ये आस्‍ट्रेलिया की मर्जी है कि वह कहां खेलें कहां नहीं। उनकी मर्जी होगी तो वो गली में भी खेल लेंगे। आखिर गोरे हैं। ये बात याद रखो। इंजू भाई एक काम करो।

तुम हमें बुला लो हम तो एक ही थैली के चटटे बटटे हैं। हम पर क्‍या फर्क पड़ता है इन बम विस्‍फोटों का। तुम्‍हें तो पता है कि हम बमों के साए में खेल खेलते हैं। अब हम पॉलिटिशियन तो हैं नहीं। होते तो कुछ और ही बात होती। खैर...। छोडो...। जाने दो। एक नेक सलाह तो हमारी है यदि तुम मानों तो। तुम्‍हारे यहां पर मौजूद दाउद से यदि तुम मदद लो तो वो जरूर कुछ कर सकता है। आखिर वो अख्‍खी कंट्री का भाई है। उसकी बात कोई नहीं टालेगा। और यदि किसी ने कोशिश की तो हम हैं ना। हम बताएंगे की भाई क्‍या चीज है।

वैसे हमारा मानना है कि ज्‍यादा टेनशन मत लो। टेनशन लेने का नहीं देने का, क्‍या। भई अब क्‍या कहें हमारे यहां से तो चैंपियंस ट्राफी पर बीसीसीआई ने हर वक्‍त तुम्‍हारा ही साथ दिया था। मगर अब...। कुछ नहीं कहा जा सकता।





 

शनिवार, 20 सितंबर 2008

टेस्‍ट क्रिकेट के आगाज के साथ बढती भारत की परेशानियां

ग्‍यारह में चार ऐसे खिलाड़ी जो अपने टेस्‍ट करियर का आगाज आगामी ट्राफी से करेंगे आस्‍ट्रेलिया टीम में शामिल हैं। बडी बात यह नहीं है। बडी बात है कि यदि ऐसी टीम से भारत हार गया तो यह भारत के लिये बेहद शर्म की बात होगी। यह ट्राफी खेल के साथ शायद अपनी नाक बचाने की जुगत भी बन जाएगी।

कमल कान्‍त वर्मा

बोर्डर-गावस्‍कर ट्राफी से अपने टेस्‍ट करियर का आगाज करने वाले चार खिलाडी आस्‍ट्रेलिया की टीम में मौजूद हैं। यह चार खिलाडी इस बडी ट्राफी से अपना टेस्‍ट करियर शुरू कर रहे हैं। ये हैं डॉग बॉल्गिर, जेसन क्रेजा, ब्राइस मेक्‍गेन, पीटर सीडल। इन सभी ने अपने घरेलू मैदान पर मैच खेले हैं, मगर कहा जाता है कि क्रिकेट में टेस्‍ट फोरमेट सबसे अच्‍छा फोरमेट है। इस फोरमेट को क्रिकेट की जान भी कहा जाता है। आखिर इन खिलाडियों को कहीं ना कहीं तो शुरूआत करनी ही थी फिर ये ट्राफी भी क्‍या बुरी है। मगर यहां पर एक बात गौर करने वाली है। वह यह है कि ऐसी टीम जिसके ग्‍यारह खिलाडी भारत में कभी टेस्‍ट नहीं खेले और इसमें भी चार अपने टेस्‍ट करियर का आगाज कर रहे हों, भारत के लिये जीतना जरूरी होगा। मजे की बात यह है कि आस्‍ट्रेलिया ने इस टीम के साथ दोनों ही हाथों में लडडू ले लिये हैं। यदि वह सीरीज हारी तो बात आएगी की नौ‍सीखिया टीम थी।

यदि टीम जीती तो कहा जाएगा कि नए खिलाडियों के साथ भी सीरीज जीतने का दम बस आस्‍ट्रेलिया में ही है। भारत के लिये यहां पर काले बादल घिरे जरूर दिखाई देते हैं। भारत की जीत यहां पर जरूरत नहीं बल्कि जरूरी है। भारतीय टीम को उधेडने वाले बहुत हैं। एक भी हार भारत की टीम की धज्जियां उधेड सकती है। सभी कहेंगे कि एक नौसीखिया टीम के हाथों भारतीय टीम हार गई। वो भी वो टीम जिसमें द वाल, लिटिल मास्‍टर, जम्‍बो जैसे खिलाड़ी मौजूद थे। हालाकि यह भी सच है कि श्रीलंका में यही जम्‍बों टीम श्रीलंका शेरों के आगे टूट गई थी। आस्‍ट्रेलिया टीम के मौजूदा ये चार खिलाडियों में से डॉग बॉल्गिंर और क्रेजा ने नार्थ साउथ वेल्‍स की तरफ से क्रिकेट खेला है तो ब्रेस मैक्‍गेन और सीडल ने विक्‍टोरिया की टीम की तरफ से खेल चुके हैं। यह सभी 23 से 36 साल की उम्र के बीच हैं। सबसे बुर्जुगवार खिलाडी और ऑस्‍ट्रेलिया के स्पिनर मेक्‍गेन 36 साल के हैं।

जहां भारत में इस उम्र में खिला‍डी रिटायर होने के करीब होते हैं वहीं यह ना सिर्फ अपने टेस्‍ट क्रिकेट का आगाज कर रहा है बल्कि वह भी भारत के साथ। इन खिलाडियों को जहां पूरा मौका है भारत के धुरंधरों के छक्‍के छुडाने का वहीं भारतीय खिलाडियों को इनसे बचते हुए अपनी लाज बचानी होगी। मेक्‍गेन पर इस ट्राफी में जिम्‍मेदारी बेहद बड़ी है क्‍योंकि उन्‍हें वार्न की कसर पूरी करने के लिये भेजा जा रहा है। अपनी भूमिका को सही से निभाने के लिये उनपर दबाव जरूर होगा। हालाकि आस्‍ट्रेलिया ने अभी से भारत पर यह कहकर दबाव बनाना शुरू कर दिया है कि उनकी टीम अनुभवहीन है। वहीं भारत के सूरमां भी यह कहते नहीं चूक रहे हैं कि उन्‍हें आस्‍ट्रेलिया के नौसीखियों से कोई समस्‍या नहीं है। मैक्‍गेन आस्‍ट्रेलिया ए टीम में शामिल थे और उन्‍होंने भारत ए के खिलाफ अच्‍छा प्रदर्शन भी किया था। यदि यह प्रदर्शन जारी रहा तो जरूर भारत के लिये परेशानी हो सकती है।

गुरुवार, 18 सितंबर 2008

नम्‍बर सात खिलाडियों की दिलचस्‍प होगी कहानी

भारत में होने वाली आगामी टेस्‍ट सीरीज पर क्रिकेट प्रेमियों की निगाहें लगी हैं। मगर यह सीरीज इस बार दिलचस्‍प होने के पूरे आसार हैं। आस्‍ट्रेलिया के नम्‍बर सात पर खेलने वाले खिलाड़ी और विकेटकीपर एडम गिलक्रिस्‍ट इस बार भारत दौरे पर सन्‍यास लेने के चलते नहीं हैं। वहीं भारत ने धोनी के रूप में सातवें नम्‍बर पर खेलने के लिये बेहतर खिलाड़ी ढूंढ लिया है। देखना दिलचस्‍प होगा कि इस नम्‍बर पर खेलते हुए क्‍या धोनी गिलक्रिस्‍ट के नाम को फीका कर पाते हैं या नहीं।


कमल कान्‍त वर्मा

ऑस्‍ट्रेलिया और भारत के बीच होने वाली आगामी टेस्‍ट सीरीज के दिलचस्‍प होने के आसार हैं। 2004-05 में हुई बॉर्डर-गावस्‍कर सीरीज में ऑस्‍ट्रेलिया ने 35 साल के बाद भारत को भारत की ही जमीन पर मात देकर वाह-वाही लूटी थी। लेकिन, इस बार की परिस्थितियां कुछ अलग हैं। और यदि गौर करें तो यह बात देखने में आती है कि आगामी सीरीज में दोनों टीमों के लिए नंबर सात के बल्‍लेबाज की भूमिका काफी महत्‍वपूर्ण हो सकती है।

किसी भी टीम के लिए नंबर सात पर बल्‍लेबाजी करने वाले खिलाड़ी का रोल बड़ा महत्‍वपूर्ण होता है। टीम का नंबर सात बल्‍लेबाज न केवल मध्‍यक्रम और निचले क्रम को जोड़ने वाली कड़ी होता है, बल्कि मैच के परिस्थितियों के अनुरूप उसकी भूमिका में लगातार परिवर्तन भी होता रहता है।

आगामी सीरीज के मद्द्रनजर यदि भारत और ऑस्‍ट्रेलियाई टीमों के सांतवें नम्‍बर के बल्‍लेबाजों की बात की जाए, तो कुछ बातें ऐसी हैं जो बेहद दिलचस्‍प दिखाई देती हैं। यदि दोनों टीमों का विश्‍लेषण किया जाए तो ऑस्‍ट्रेलिया की टीम में सातवें नम्‍बर पर खेलने वाले खिलाडियों ने टीम की जीतों में अहम योगदान किया है। वहीं भारत की बात की जाए तो भारत में अभी तक ऐसे बल्‍लेबाज की कमी साफ दिखाई देती है जो सातवें नम्‍बर पर रह कर अच्‍छी बल्‍लेबाजी कर सके। यदि ऑस्‍ट्रेलिया के सातवें नम्‍बर के खिलाडियों से मिलान किया जाए तो भारतीय टीम पिछड़ती दिखाई देती है। हालांकि, कपिल देव ने इस क्रम पर बल्‍लेबाजी करते हुए अच्‍छा प्रदर्शन किया है। भारत की तरफ से रवि शास्‍त्री, सैयद किरमानी, यशपाल शर्मा, पार्थिव पटेल, दिनेश मोंगिया, वीवीएस लक्ष्‍मण जैसे खिलाड़ी सातवें नम्‍बर पर खेले हैं। वहीं ऑस्‍ट्रेलिया की ओर से रोडनी मार्श, इयान हिली, ग्रेग मैथ्‍यूज और एडम गिलक्रिस्‍ट के नाम इस क्रम पर बल्‍लेबाजी करने वालों में मुख्‍य है। अगर गिलक्रिस्‍ट को सात नंबर बल्‍लेबाजी करने वाला सर्वश्रेष्‍ठ बल्‍लेबाज कहा जाए तो गलत नहीं होगा। जब तक गिलक्रिस्‍ट टीम में मौजूद रहे ऑस्‍ट्रेलिया इस मामले में भारत से आगे रहा।
सात नम्‍बर पर खेलने आए खिलाडियों में एक बात और खास है। वह यह है कि इस नम्‍बर के ज्‍यादातर खिला‍ड़ी विकेटकीपर के तौर पर रहे। फिर चाहे वह भारत के पार्थिव पटेल, सैयद किरमानी, धोनी हों या फिर ऑस्‍ट्रेलिया के हिली या मार्श। 2004-05 के दौरान बोर्डर गावस्‍कर टेस्‍ट सीरीज में जहां गिलक्रिस्‍ट ने ऑस्‍ट्रेलिया की तरफ से खेलते हुए पूरी सीरीज में 150 रन बनाए वहीं, धोनी ने कुल 103 रन और लक्ष्‍मण ने महज 79 रन बनाए थे। 2007-08 की सीरीज में भी गिलक्रिस्‍ट भारतीय टीम के सातवें नम्‍बर के खिलाड़ी से कहीं आगे थे। इस दौरान जहां गिलक्रिस्‍ट पूरी सीरीज में ही सातवें नम्‍बर पर मैदान में उतरे वहीं भारत लगातार प्रयोग करता रहा। शायद इसलिये ही भारत ने सातवें बल्‍लेबाज के तौर पर मो.कैफ, पार्थिव पटेल, कार्तिक को मौका दिया। य‍ही वजह है कि भारत को इस क्रम के लिये सही बल्‍लेबाज की कमी हमेशा अखरती रही है।
लेकिन, इस बार मामला थोड़ा उल्‍टा है। भारत के पास धोनी के रूप में एक परिपक्‍व और जिम्‍मेदारी खेलने वाला बल्‍लेबाज है, लेकिन ऑस्‍ट्रेलिया के पास इस नंबर पर ऐसा कोई नाम नहीं दिखता। वजह साफ है। गिलक्रिस्‍ट रिटायर हो चुके हैं और उनकी जगह ब्रैड हैडिन आए हैं। ज्‍यादा संभावना इसी बात की ही है कि हैडिन नंबर पांच पर बल्‍लेबाजी करने आएंगे। उन्‍हें कोई अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट का ज्‍यादा अनुभव नहीं है। भारत में यह उनका पहला टेस्‍ट दौरा होगा। यहां की स्पिन लेती पिचों पर वह कैसा प्रदर्शन कर पाते हैं, यह भविष्‍य के गर्भ में छिपा है। फिलहाल, इस मामले में भारत इस बार ऑस्‍ट्रेलिया आगे नजर आता है। अगर ऑस्‍ट्रेलिया को नंबर सात पर गिलक्रिस्‍ट का उत्‍तराधिकारी नहीं मिलता है तो उसके लिए यह परेशानी की बात होगी।

वहीं धोनी के उदय के बाद भारत के लिए नंबर सात के बल्‍लेबाज की तलाश फिलहाल पूरी हो गई दिखती है। हालांकि, अभी धोनी ने बहुत ज्‍यादा टेस्‍ट नहीं खेले हैं, लेकिन पिछले दो सालों में जिस जिम्‍मेदारी के साथ उन्‍होंने वनडे और टेस्‍ट मैचों में बल्‍लेबाजी की है, उसके मद्देनजर ऐसा कहने में कोई संकोच नहीं है। यह कोई बड़ी बात नहीं कि अक्‍तूबर में शुरू हो रही भारत-ऑस्‍ट्रेलिया सीरीज में नंबर सात पर खेलने वाले बल्‍लेबाजों के प्रदर्शन में अंतर दोनों टीमों के प्रदर्शन का फर्क बन जाए।

रविवार, 14 सितंबर 2008

क्‍योंकि पैसा बोलता है.............

बीसीसीआई आज क्रिकेट जगत में सबसे अमीर बोर्ड है। यही वजह है कि इसकी तूती क्रिकेट जगत में बोलती है। आईसीसी बीसीसीआई की बात सु‍नती है। पहले कभी फुटबाल के मंहगे क्‍लब गिने जाते थे। वहीं अब उनमें क्रिकेट के नाम पर बीसीसीआई पहले नम्‍बर पर गिना जाता है।
कमल कान्‍त वर्मा
एक वक्‍त था जब आस्‍ट्रेलिया और इंग्‍लैंड सरीखे देशों की तूती क्रिकेट जगत में बोलती थी। वजह यह थी कि उनके पास पैसा था पावर थी। वक्‍त ने करवट ली और अब पैसा और पावर दोनों ही भारत आ गई। यही वजह है कि आज क्रिकेट जगत में बीसीसीआई की तूती बोलती है। आज हर कोई इस बात को मानता भी है। आईसीसी में यह बात उजागर है कि भारत में क्रिकेट एक पागलपन है। बाकी देशों की तरह सिर्फ एक खेल ही नहीं है। यहां पर लोग इसके दिवाने हैं। ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पाकिस्‍तान में भी ऐसा ही है।
बीसीसीआई आज की तारीख में सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड की श्रेणी में आता है। अपने दम पर बीसीसीआई फैसले लेने की हिम्‍मत भी रखता है। अब इस साल हुए आईपीएल को ही ले लिजिए। पूरी दुनिया में इसने टी 20 फोरमेट को जितनी तेजी के साथ रातों रात शोहरत दिलाई उतनी क्रिकेट के इतिहास में शायद ही किसी ने दिलाई हो। इसकी धूम इतनी हुई कि कुछ खिलाडियों ने इसको ओलंपिक में शामिल करने की वकालत तक कर डाली। यह और किसी का नहीं सिर्फ बीसीसीआई का ही कमाल था। कहने वालों ने कहा कि यह पैसे का खेल है। मगर खेल किसी का भी रहा हो देखने वालों ने इसमें पूरा मजा लिया।
अकेले आईपीएल में बीसीसीआई को 350 करोड का फायदा हुआ। भारत की क्रिकेट में तवज्‍जो का पता इसी से चलता है कि श्रीलंका अपने यहां पर भारत के खिलाफ टेस्‍ट सीरीज कराकर इस लिये भी खुश थी कि भारत के इस दौरे से वह वित्‍तीय संकट से उबर पाएगी। आगामी चैंपियंस लीग में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिलेगा। इस 900 मिलियन डॉलर की लीग में बीसीसीआई आधे का हिस्‍सेदार होगा। धीरे धीरे भारत या कहें तो बीसीसीआई फुटबाल सरीखे मंहगें क्‍लब की ही तरह से गिनी जाएगी। अभी तक महंगे क्‍लब का तमगा सिर्फ फुटबाल क्‍लब के ही पास हुआ करता था। अब यह रूतबा बीसीसीआई के पास भी आ जाएगा। बीसीसीआई ने इसके चलते अपनी पैंठ आईसीसी में भी जमा ली है। आज हम उस मुकाम पर हैं जहां से हमें दुनिया देख सकती है और हम दुनिया को देख सकते हैं। मगर जितनी तेजी से हम आगे बढे हैं उतनी ही तेजी से चलते हुए हम कहीं ठोकर ना खा जाए इसका भी घ्‍यान रखना बेहद जरूरी है। किसी भी ताज को पाने से ज्‍यादा चुनौती उसको बचाए रखने की होती है।

गुरुवार, 11 सितंबर 2008

धोनी पर आईसीसी के ताज को बनाए रखने की नई जिम्‍मेदारी


धोनी ने वनडे के प्‍लेयर ऑफ द इयर का खिताब क्‍या मिला कि उनके टेस्‍ट टीम का कप्‍तान बनने की बातों को और अधिक बल मिलने लगा। मगर आज धोनी को यह नई जिम्‍मेदारी संभाल कर रखनी होगी। यह जिम्‍मेदारी टेस्‍ट टीम के कप्‍तान बनने से कहीं अधिक बड़ी है कि क्‍या धोनी इस ताज को आगे भी बरकरार रख सकेंगे।

कमल कान्‍त वर्मा

धोनी एक बार फिर आईसीसी के लिये सरताज बनें। चौकनें वाली बात नहीं है। इससे पहले वह आईसीसी रेंकिंग में सरताज बने थे और अब आईसीसी पुरस्‍कार में वह वनडे के लिये प्‍लेयर ऑफ द इयर के खिताब से नवाजे गए। यही है धोनी की बादशाहत। धोनी ने क्रिकेट की दुनिया में अपना सिक्‍का चलाया है। अपने ही दम पर यह मुकाम हासिल करने वाला यह भारतीय टीम का कप्‍तान आज क्रिकेट की उंचाईयों को छू रहा है। हो भी क्‍यों ना आखिर यहां तक वह एक ही दिन में नहीं पहुंचा है। इस मुकाम तक आने में कई साल लगे हैं। धोनी को पहले उसके हेयर स्‍टाईल से जाना जाता था।

जरा याद किजिए पाकिस्‍तान का वह दौरा जब धोनी के हेयर स्‍टाइल की तारीख उस वक्‍त पाकिस्‍तान के राष्‍ट्रपति परवेज मुशरर्फ ने भी की थी। मगर आज वह बालों को स्‍टाईल बदल चुका है। साथ ही बदल गया है धोनी का वह रूतबा जिसके लिये वह पहले जाने जाते थे। मतलब धोनी के बालों के साथ ही वह धोनी भी बदल गया जिसको प्रशंशक सिर्फ उसके हेयर स्‍टाईल के लिये जानते थे। आज धोनी को बेहतर कप्‍तान, बेहतर खिलाडी और बेहतर विकेट कीपर के तौर पर जाना जाता है। धोनी को अपनी युवा ब्रिगेड पर पूरा भरोसा है। यही वजह है कि वह इस ब्रिगेड में बदलाव करने या फिर प्रयोग करने से नहीं चूकते। फिर चाहे किसी की भी नाराजगी क्‍यों ना झेलनी पडे। शायद यही वजह रही होगी जो आज धोनी को टेस्‍ट क्रिकेट की कप्‍तानी की आवाजें चारों तरफ से आ रही हैं।

यह सही है कि धोनी मौजूदा टेस्‍ट कप्‍तान अनिल कुंबले से अनुभव में छोटे हैं, मगर अपनी जीत के लिये आक्रामकता उनमें साफ झलकती है। वहीं कुंबले बेहद विन्रम स्‍वभाव के खिलाड़ी हैं। बहरहाल टेस्‍ट का कप्‍तान कोई भी हो मगर यह साफ है कि दोनों ही खिलाडियों में अपने खेल के प्रति लगाव और जुनून दोनों ही हैं। भारत ही नहीं अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर भी अब इस बात पर विचार किया जा रहा है कि टेस्‍ट, वनडे, टी-20 की कप्‍तानी किसी एक को ही सौंपी जानी चाहिए। यदि ऐसा हुआ तो धोनी पर जिम्‍मेदारी का भार कहीं ज्‍यादा बढ़ जाएगा। मगर सभी को उम्‍मीद है कि वह इसको संभाल सकेंगे। अभी भी टी-20 और वनडे की कप्‍तानी धोनी के ही पास है। धोनी के स्‍टार बनने में पहले भी कोई कसर नहीं थी मगर वह आज क्रिकेट के बडे ब्रांड बन गए हैं। दुनिया के बेहतरीन बल्‍लेबाजों की फैरिस्‍त में आना कोई मजाक तो नहीं है। इसका नशा भी गजब का होता है। साल भर के लिये धोनी उस मुकाम पर हैं जहां से उनको पूरा क्रिकेट जगत देख सकता है। मगर इस मुकाम को बनाए रखने की जिम्‍मेदारी भी अब कोई कम नहीं होगी। ऐवरेस्‍ट के इस शिखर पर धोनी से पहले भी कई खिलाड़ी पहुंच चुके हैं। मगर कितने इसको बनाए रखने में कामयाब हो सके इसकी गिनती कुछ में ही सिमट कर रह जाती है। धोनी के लिये यह जिम्‍मेदारी टेस्‍ट टीम का कप्‍तान बनने से कहीं ज्‍यादा होगी कि वह इस मुकाम को बचाकर रख सकें।

एक अदद स्पिनर तलाशती आस्‍ट्रेलिया की टीम

ऑस्‍ट्रेलिया और भारत के बीच होने वाली टेस्‍ट सीरीज से पहले आस्‍ट्रेलिया को अपने लिये एक अदद स्पिनर की तलाश है। शेनवार्न के टेस्‍ट को को बॉय- बॉय करने के बाद से ही ऑस्‍ट्रेलिया अपने लिये स्पिनरों की तलाश कर रही है।


कमल कान्‍त

कितने ही मैचों में ऑस्‍ट्रेलिया को अपने दम पर जिताने वाले शेन वार्न ने टेस्‍ट मैचों को अलविदा क्‍या कहा, ऑस्‍ट्रेलिया के लिए स्पिन गेंदबाजों की कमी बहुत बड़ी समस्‍या बन गई। ऑस्‍ट्रेलिया अगले महीने भारत में‍ टेस्‍ट सीरीज खेलने आ रही है। ऐसे में टीम के पास किसी अनुभवी स्पिन गेंदबाज का ना होना दुखदायी साबित हो सकता है।

ऑस्‍ट्रेलिया को कई मैच जिताने वाले दिग्‍गज स्पिनर शेन वार्न ने दुनिया भर में राज किया है। टेस्‍ट मैच में शेन वार्न के खाते में 708 विकेट हैं। शेन वार्न के आगे बडे बडे खिलाडियों ने घुटने टेके हैं। मगर भारत के खिलाफ वॉर्न की फिरकी भी अपना कमाल नहीं दिखा पाई। वॉर्न के अलावा स्‍टुअर्ट मैक्गिल का नाम भी लिया जा सकता है। अपने करियर में 208 विकेट लेने वाले मैक्गिल हमेशा वॉर्न के साए में ही रहे। हालांकि वार्न के संन्‍यास लेने के बाद ऑस्‍ट्रेलियन टीम को मैक्गिल से काफी उम्‍मीदें थीं, लेकिन उन्‍होंने भी अचानक संन्‍यास लेकर क्रिकेट ऑस्‍ट्रेलिया को मुश्किल में डाल दिया। ब्रैड हॉग ऑस्‍ट्रेलिया के लिए अगली उम्‍मीद की किरण हो सकते थे, लेकिन बढती उम्र के मद्देनजर उन्‍होंने भी क्रिकेट को अलविदा कहने में ही अपनी भलाई समझी।

भारत के संदर्भ में यदि देखा जाए तो यहां की पिचों पर वार्न भी विकटों के लिये जद्दोजहद करते नजर आए। साल 2000 में कोलकाता में खेले गए उस यादगार टेस्‍ट को भुला पाना किसी भी भारतीय के लिए संभव नहीं है जब वीवीएस लक्ष्‍मण और राहुल द्रविड़ ने वॉर्न की फिरकी का ऐसा जवाब दिया कि वॉर्न असहाय से दिखने लगे।

भारतीय बल्‍लेबाजों के खिलाफ किसी भी स्पिनर के लिए गेंदबाजी करना इतना आसान नहीं होता, लेकिन हर टीम भारत दौरे के लिए अपनी टीम में एक-दो स्पिन गेंदबाज को शामिल करना जरूरी समझती है। स्पिन के लिए मददगार पिचों पर यह लाजिमी भी है। इसी के मद्देनजर ऑस्‍ट्रेलिया आगामी सीरीज में बेहतर स्पिनर की तलाश में है। लेकिन वर्तमान में हालत यह है कि उनके पास ऐसा कोई स्पिन गेंदबाज नहीं है, जो वार्न और मैक्गिल के रिक्‍त स्‍थानों की भरपाई कर सके।

मौजूदा टीम में शुमार माईकल क्‍लार्क की बात की जाए तो उन्‍होंने अभी तक अपने करियर के 35 टेस्‍ट में सिर्फ 16 विकेट ली हैं मगर भारत के खिलाफ उनका प्रदर्शन चौंकाने वाला रहा है। पिछले ऑस्‍ट्रेलियाई दौरे पर खेला गया सिडनी मैच इसका ताजा उदारहरण है। यहां पर भारत क्‍लार्क की बदौलत जीता हुआ मैच गंवा बैठा था। लेकिन भारत दौरे के लिए ऑस्‍ट्रेलिया क्‍लार्क जैसे पार्ट-टाइम स्पिनर पर भरोसा नहीं कर सकता। एक बेहतर स्पिनर की तलाश में ही क्रिकेट ऑस्‍ट्रेलिया ने अपनी ए टीम में तीन स्पिन गेंदबाजों को भारत भेजा है। इन्‍हीं खिलाडि़यों पर आस्‍ट्रेलिया की सारी उम्‍मीदें टिकी हैं। उम्‍मीद है कि ऑस्‍ट्रेलिया इनमें से ही किसी गेंदबाज को भारत के खिलाफ टेस्‍ट टीम में शामिल कर सकता है। अनुभव के मामले में फिसड्डी होने के बावजूद रिकी पोंटिंग को यह भरोसा है कि ये गेंदबाज उनकी टीम की जीत में प्रभावी भूमिका निभाएंगे।

हाल के भारत ए के खिलाफ हुए मैच में अकेले मैकगान की यदि बात की जाए तो आस्‍ट्रेलिया को उनसे काफी उम्‍मीद हैं। 36 साल के इस स्पिन गेंदबाज को टेस्‍ट सीरिज में भारत के खिलाफ उतारने की चर्चा जोर शोर से चल रही है। मगर देखने वाली बात यह है कि जहां पर फिरकी के बादशाह शेनवार्न कुछ खास नहीं कर पाए वहां मैकगान क्‍या कर पाएंगे।

पूरे साल में 8 बार पास तो 4 बार फेल

 
कमाल की बात है कि जो टीम पूरे साल अभी तक किसी के हाथों नहीं हारी वह पूरे साल में सिर्फ दो मैच जीतने वाली टीम से हार गई। ना सिर्फ हार गई बल्कि वनडे सीरीज ही गंवा बैठी। नेटवेस्‍ट सीरीज में जहां द. अफ्रीका ने इंग्‍लैंड से टेस्‍ट सीरीज जीतकर इतिहास रचा वहीं इंग्‍लैंड ने भी वनडे सीरीज जीतकर अपने झंडे गाड़ दिये। 


कमल कान्‍त वर्मा
नेटवेस्‍ट सीरीज में वो देखने को मिला जो अभी तक शायद ही देखने को मिला होगा। लगातार जीतने वाली दक्षिण अफ्रीका की टीम लगातार हार झेल रही टीम के सामने टूट कर बिखर गई। इंग्‍लैंड में नेटवेस्‍ट सीरीज के दौरान दक्षिण अफ्रीका की टीम अपनी लाज बचाने की जुगत करती दिखाई दी। इस सीरीज में ध्‍यान देने वाली बात यह है कि अचानक से अपनी फोर्म में आई इंग्‍लैंड की टीम ने आखिर ऐसा क्‍या पाया कि वह दक्षिण अफ्रीका पर इस कदर हावी हो गई। यदि आंकडों की बात की जाए तो इस साल में दक्षिण अफ्रीका ने अभी तक 12 मैच खेले जिसमें से वह आठ में अपनी जीत दर्ज कर पाई। यह सही है कि यह सारे मैच वह कम अंतर से जीती, मगर जीतने में सफल रही। नेटवेस्‍ट सीरीज से पहले वेस्‍ट इंडीज और बांग्‍लादेश को क्‍लीन स्‍वीप देने वाली दक्षिण अफ्रीका इंग्‍लैंड में ऐसा प्रदर्शन करके दिखाएगी यह किसी ने नहीं सोचा था।

वहीं आंकडे यह भी बताते हैं कि इंग्‍लैंड ने साल 2008 में इस नेटवेस्‍ट सीरीज से पहले कुल 11 मैच खेले जिसमें से सिर्फ दो मैच में ही वह जीत सकी। बाकी सभी मैचों में उसे हार का मुंह देखना पड़ा। मगर नेटवेस्‍ट सीरीज के दौरान टीम पूरी तरह से अपनी फोर्म में नजर आई। इन दोनों के मुकाबले में एक बात और देखने को मिली। वह यह थी कि जिस तरह से दक्षिण अफ्रीका को इंग्‍लैंड ने इस सीरीज के दौरान मात दी, ठीक उसी तरह से वह पहले के आठ मैच जीती भी थी। इस सीरीज में तीन बार ऐसा हुआ जब दक्षिण अफ्रीका की टीम 200 रन भी नहीं बना सकी। इसी सीरीज के दौरान टीम की ऐसी भदद भी पिटी की वह महज 83 रन बनाकर पवेलियन में रखी कुर्सियों पर आहें भरती नजर आई। यदि दक्षिण अफ्रीका और इंग्‍लैंड के बीच अभी तक हुए कुल मैचों की बात की जाए तो यह आंकडा दक्षिण अफ्रीका के ही पक्ष में जाता है। 1992 से 2008 तक इन दोनों के बीच 39 मैच खेले गए जिसमें 22 का फैसला दक्षिण अफ्रीका के पक्ष में रहा तो 15 इंग्‍लैंड की झोली में जाकर गिरे। मगर, हां इंग्‍लैंड में होने वाले मैचों में यह आंकडा इंग्‍लैंड के ही पक्ष में जाता है। अपने घरेलू मैदान पर जीतने वालों में इंग्‍लैंड कहीं आगे है। इसका सीधा सा अर्थ है कि उसे अपने घरेलू मैदान पर खेलने का पूरा अनुभव है, साथ ही वहां पर मौजूद तमाम परिस्थितियां भी उन्‍हीं के अनुकूल दिखाई देती हैं। मगर वहीं दक्षिण अफ्रीका की हालत इंग्‍लैंड में खेलने के मामले में पहले से ही पतली रही है।

1975 से 2008 तक दक्षिण अफ्रीका ने इंग्‍लैंड के मैदान में 28 बार अपनी किस्‍मत आजमाई। मगर वह सिर्फ 13 बार ही सफल हो पाए। इस बार की सीरीज में मैच गंवा कर दक्षिण अफ्रीका इन्‍हीं आंकडों में इजाफा कर रही है। इसके अलावा इससे पहले कभी भी इंग्‍लैंड की टीम ने इस तरह से क्‍लीन स्‍वीप करके कोई सीरीज नहीं जीती है। यह भी अपने आप में अहम है। इसके पीछे एक वजह समझ में आती है और वह यह है कि दक्षिण अफ्रीका की बल्‍लेबाजी के प्रदर्शन में लगातार गिरावट देखने को मिली है। यदि इस टीम के सिर्फ मध्‍यक्रम बल्‍लेबाजों की बात की जाए तो नेटवेस्‍ट सीरीज के दौरान कॉलिस, डिविलियर्स, डयूमिनी और बाउचर जैसे महारथियों ने मिलकर महज 242 रन ही बनाए हैं। वहीं दक्षिण अफ्रीका के गेंदबाज भी इस सीरीज में पूरी तरह से नाकाम रहे। इस क्रम के बल्‍लेबाजों में यदि कॉलिस को छोड दे तो किसी भी बल्‍लेबाज ने इस सीरीज में कोई अर्द्धशतक नहीं बनाया। कुछ खिलाड़ी तो ऐसे भी रहे जो अपना खाता खोलने से पहले ही पवेलियन लौट गए। कुल मिलाकर इन सभी का खामियाजा पूरी टीम को सीरीज हारकर चुकाना पड़ रहा है। हालाकि इससे पहले ही दक्षिण अफ्रीका ने इंग्‍लैंड से 2-1 से टेस्‍टमैच की सीरीज जीतकर एक इतिहास बनाया था, वहीं एक इतिहास इंग्‍लैंड भी बना रहा है 5-0 से जीतकर। दोनों ही टीमों का एक ही जमीन पर अलग अलग सीरीज जीतने का ऐसा उदाहरण कम ही देखने को मिलता है।