मंगलवार, 20 मार्च 2012
केंद्र पर नार्थ ईस्ट को नजर अंदाज करने का आरोप
नहीं लगेगी भगवद गीता के संस्करण पर रोक
शनिवार, 11 अप्रैल 2009
झटके पे झटका, झटके पे झटका आखिर कब तक
झटका मीट शॉप। यह नाम है आने वाले आईपीएल का जो हमनें दिया है। अरे भई इस बेचारी आईपीएल को इतने झटके खाने पड रहे हैं कि इससे बेहतर नाम और कुछ हो ही नहीं सकता है। आने वाले दिनों में और देखते हैं कि इसको क्या कुछ सहना पडेगा।
कमल कान्त वर्मा
झटके पे झटका झटके पे झटका आखिर कब तक। आईपीएल को तो अपने नए सीजन में पता नहीं कितने ही झटके सहनें होंगे। पहले जगह बदलने का झटका, फिर पाकिस्तानी खिलाडियों को हटाने का झटका, कभी उनके चुनौती देने का झटका। और इन सभी से निजाद मिली तो अब स्टेडियम मै बैठने का ही झटका आईपीएल को लग गया। ये जोर का झटका घीरे से आखिर कब तक लगता रहेगा।
आखिर इस आईपीएल को कब तक सहन करने होंगे ये झटके। इतने झटकों से ऐसा लग रहा है जैसे आईपीएल 2 झटका मीट शॉप बन कर रह गई हो। अब कोई ये कहे कि खिलाडियों के बैठने को लेकर भला क्या झटका आईपीएल को लगा है। तो हुआ यूं है जनाब कि न्यूलैंडस जहां पर आईपीएल के शुरूआती मैच खेले जाने हैं वहां मौजूद सूइटस के सदस्यों ने कह दिया है कि वह अपनी जगह खाली नहीं करेंगे। तो भला फिर आपके और हमारे आईपीएल खिलाडी मैदान की सूखी और गीली घास को अपनी बैठने की जगह बनाएंगे क्या। सवाल तो बडा होने के साथ साथ चुनौतीपूर्ण भी है। सूइटस का ख्वाब दिखाने वाली आईपीएल के सामनें तो यह नाक कटनें जैसी स्थिति हो गई है। आखिर करे तो क्या करे। मगर यदि कोई हमसे पूछे तो हम तो उन सदस्यों के ही साथ हैं भई। आखिर कुर्सी का मामला है। भला कोई कैसे छोड दे। कुर्सी है तो सब कुछ है कुर्सी नहीं तो कुछ भी नहीं।
आईपीएल ने आज कुर्सी मांगी है कल पता नहीं क्या मांग ले, कहना मुश्किल है। हालाकि मोदी साहब ने अब ने वहां के सदस्यों को सूइट खाली करने के लिये कुछ ख्वाब दिखाने शुरू कर दिये हैं। वो कहते हैं कि आप टैंट में बैठ जाओ हम तुम्हें टिकटें भी फ्री दे देंगे। इसके अलावा खाना भी मुफत मिलेगा। ऐसा लग रहा है कि जैसे भारत में होने वाली किसी रैली में भीड को जुटाने की मंशा से यह बातें कही जा रही हैं। क्या आपको ऐसा नहीं लगता है। अब तो खिलाडियों की स्थिति पर एक ताजा तरीन शेर याद आने लगा है। वो कुछ ऐसा है कि फुटपाथ हर सडक का है आशियां हमारा, रहने को घर नहीं है सारा जहां हमारा। देखते हैं कि कुर्सी का यह मामला आखिर किस तरफ जाता है। जैसे भारत में सभी चुनाव के दौरान दूसरे की कुर्सी खींचने में लगे हैं वैसा ही कुछ हाल इन दिनों न्यूलैंडस के स्टेडियम में चल रहा है। मानों मोदी कह रहें हो यह कुर्सी हमका दे ठाकुर। फिलहाल तो हमारी निगांहें भी इनकी कुर्सी मामले पर है आप भी जरूर निगाह रखियेगा।
मंगलवार, 7 अप्रैल 2009
ना चाहते हुए भी बन गए ना पप्पू
अब सभी स्टार खिलाडियों के नाम बदले जाने के दिन हैं। वजह बना है आईपीएल। आईपीएल के चलते इन खिलाडियों के पीछे ना चाहते हुए भी पप्पू का तमगा लग गया है। बडे से बडा खिलाडी भी अब इस तमगे को लगाने से बच नहीं सकता है।
रविवार, 2 नवंबर 2008
ऐसा विदाई समारोह पहले कभी देखने को नहीं मिला
कमल कान्त वर्मा
फिरोजशाह कोटला के मैदान की घड़ी में अभी करीब 3:05 मिनट का समय रहा होगा। मैदान में कुछ सन्नाटा छाया था। भारतीय खिलाडी कतार में खडे होकर किसी का इंतजार कर रहे थे। अचानक माहौल बदला और तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा स्टेडियम गूंज उठा। जिसका खिलाडि़यों को इंतजार था वह शख्स पवेलियन से निकलकर मैदान की तरफ बढ़ रहा था। यह थे भारतीय टेस्ट टीम के कप्तान अनिल कुंबले। प्यार से जंबों के नाम से मशहूर इससे पहले इसी फिरोजशाह कोटला मैदान पर अपनी रिटायरमेंट का ऐलान कुछ देर पहले ही कर चुके थे। ऐसी विदाई की उम्मीद शायद ही किसी भारतीय खिलाड़ी ने की हो। भारतीय क्रिकेट में विकेट के बादशाह को जो विदाई मिली वह शायद ही इससे पहले किसी को मिली हो। यही था जंबो का रूतबा। भारतीय क्रिकेट के इतिहास में पहला मौका था जब किसी खिलाड़ी और कप्तान ने इस तरह से मैदान पर अपनी रिटायरमेंट का ऐलान किया हो। यह पल भारतीय टीम के लिये भावुकता से भरा था। वह एक ऐसे खिलाडी को विदाई दे रहे थे जो अपने अकेले के दम पर भारतीय टीम को जीत का सहरा पहनाने की हिम्मत रखता था।
1990 में अपने करियर का आगाज करने वाले अनिल कुंबले ने जब अपनी आंखों पर चश्मा लगा कर गेंदबाजी संभाली थी तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह शख्स 18 साल तक क्रिकेट से जुड़ा रहकर इतनी बुलंदियों को छू लेगा। चेहरे पर कुछ दमदार मुंछे अनिल कुंबले की पहचान हुआ करती थी। मगर पहले चश्मा गायब हुआ फिर मूंछे और सामनें था अनिल कुंबले का एक नया रूप एक नया नाम जंबो। भला कौन भूल सकता है कुंबले के वो दस विकेट जो इसी मैदान पर पाकिस्तान के खिलाफ उन्होंने लिये थे। यह भारत के लिये पहला मौका था जब किसी भारतीय ने एक ही पारी में दस विकेट लिये हों। जिम लेकर के 1956 में बनाए रिकार्ड को तोड़ने वाले जंबो दुनिया के दूसरे ऐसे खिलाड़ी बने जिसने एक ही पारी में इतनी विकेट ली हों। तभी तो जंबो जंबो हैं। आज भी कुंबले की विदाई का गवाह यही मैदान बना। शायद इसकी वजह उनकी चोट या फिर वही दस विकेट रहे हों। अजहर की कप्तानी में इसी फिरोजशाह कोटला मैदान पर कुंबले ने पाकिस्तान के खिलाफ दस विकेट लेकर जो इतिहास रचा वह आज भी कायम है। इस खिलाड़ी की विकेट की भूख कभी कम होती दिखाई नहीं दी।
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उनकी सबसे ज्यादा विकेट रहीं हैं। 2004 में सिडनी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उन्होंने एक ही पारी में आठ विकेट चटकाई थीं। 619 टेस्ट विकेट अपनी झोली में डालने वाले कुंबले के नाम कई रिकॉर्ड दर्ज है। कुंबले ने क्रिकेट को अपना सौ फिसदी प्रदर्शन दिया है। भला वेस्टइंडीज की वह पारी कौन भूल सकता है जब कुंबले अपना जबड़ा टूटने के बाद मुंह पर पटटी बांधकर मैदान पर आए थे और लारा का विकेट ले उड़े थे। मुंह खुलने में दर्द का एहसास उनके चेहरे पर था फिर भी उनके चेहरे से विकेट लेने की खुशी हटी नहीं थी। फिरोजशाह का यह तीसरा टेस्ट मैच भी कुछ ऐसा ही रहा जब कभी कंधे के दर्द से कुंबले को बाहर बैठना पड़ा तो कभी उंगली के फट जाने के कारण मैदान से मजबूरन जाना पड़ा। मगर इन सभी के बाद टीम में शामिल होकर टीम की हौंसला अफजाई करना वह कभी नहीं भूले तभी तो उंगली में ग्यारह टांके लगने के बाद भी मैदान में आकर उन्होंने ना सिर्फ बॉंलिंग ही की बल्कि कैच भी लपका बिना यह परवाह किये कि डॉक्टर ने उन्हें गेंदबाजी करने से मना किया है। यह जज्बा जंबो का ही हो सकता है।
भारत में उनकी बराबरी करने वाला कोई गेदबाज नहीं है। कुंबले ने जिन खिलाडियों के साथ अपना सफर शुरू किया था वह भले ही आज मैदान से बाहर हों मगर उनकी गेंदबाजी का कायल हर कोई है। फिर चाहे वह अहजर, कपिल, रविशाश्त्री हों या कोई और। फिरोजशाह के मैदान पर आज का नजारा जंबो के लिये हमेशा यादगार बनकर उनके दिल और दिमाग में बसा रहेगा। अपनी बॉलिंग में बेहद आक्रामक दिखाई देने वाले कुंबले अपने स्वभाव से बेहद नरम हैं। इस नरम दिल स्वभाव वाले व्यक्तित्व को पूरी दुनिया में क्रिकेट खिलाड़ी बेहद प्यार करते हैं। अब जब क्रिकेट के मैदान पर दर्शक उनकी बॉलिंग का जादू नहीं देख पाएंगे तो एक कमी तो जरूर रहेगी ही। जंबो ने अपने प्रदर्शन के दम पर सबसे ज्यादा बार भारत को जीत दिलाई है। दुनिया में सबसे ज्यादा टेस्ट विकेट लेने वाले कुल तीन खिलाडियों में जंबो तीसरे नम्बर पर है। कुंबले के रिकॉर्ड की बराबरी करना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिये किसी भी खिलाड़ी को कुंबले ही बनना होगा, तभी वह इसको अंजाम दे सकेगा। अपने इस आखिरी मैच के बाद उनके इस विदाई समारोह में ना सिर्फ वहां मौजूद खिलाड़ी शामिल हुए बल्कि पूरे खेल प्रेमी इसमें शामिल थे। मैदान में अपनी साथी खिलाडियों की बाहों पर बैठे जंबो का हर दर्शक ने खडे होकर अभिवादन किया और उनके योगदान को सराहा।
गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008
आसान नहीं रही सचिन के महानायक बनने की राह
शुक्रवार, 26 सितंबर 2008
वर्ल्ड कप को वो आखिरी ओवर
कमल कान्त वर्मा
टी-20 का वर्ल्ड कप फाइनल और आमने सामने चित परीचित अंदाज में भिडने वाली भारत और पाकिस्तान की टीमें। यह शाम इस वर्ल्ड कप के लिये बेहद अहम थी। पाकिस्तान जीत से सिर्फ 12 रन दूर था। मैच का आखिरी ओवर और खिलाडियों के साथ-साथ दर्शकों के माथे पर लकीरें साफ दिखाई दे रहीं थीं। किसी के हाथ भारत की जीत के लिये उठे तो किसी के पाकिस्तान की जीत के लिये। जोहन्सबर्ग के इस स्टेडियम ने दर्शकों में इतना उतावला पन शायद पहले कभी नहीं देखा हो। क्रीज पर मिसबाह-उल-हक के साथ दूसरे छोर पर मो. आसिफ डटे थे। जीतने का जज्बा पूरी तरह से दोनों खिलाडि़यों में दिखाई दे रहा था। वहीं महेन्द्र सिंह धोनी आखिरी को इस आखिरी समय में एक अदद अच्छे गेंदबाज की जरूरत थी। मिसबाह काफी हद तक जानते थे कि धोनी के पास जोगिंदर सिंह एक विकल्प के तौर पर मौजूद है। आखिरी ओवर में 12 रन की जरूरत को पूरा करने के लिये मिसबाह स्ट्राइक लेने के लिये पूरी तरह से तैयार थे।
जोगिंदर सिंह अपने ओवर की पहली गेंद फेंकी तो मिसबाह कुछ बीट हुए। इस गेंद के साथ दर्शकों की सांसे कुछ देर के लिये रूकी हुई थीं। धोनी के ज्यादातर फील्डर बाउंडरी की तरफ निगाह लगाए बैठे थे। जोगिंदर सिंह की दूसरी बॉल के साथ मिसबाह ने पूरी जान से बॉल को खिलाडियों के उपर से उठाकर बाउंडरी के बाहर फेंक दिया। मिसबाह के इस एक शॉट ने भारतीय खेमे में खलबली पैदा कर दी। जहां पाकिस्तान के प्रशंशक खुशी से उछल पड़े, तो वहीं भारतीय समर्थकों के चेहरे पर तनाव की लकीरें साफ दिखाई दे रहीं थीं। धोनी ने एक बार फिर जोगिंदर से बात की और अपनी पॉजीशन पर चले गए। जोगिंदर की तीसरी गेंद ने एक बार फिर से भारत की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। यह बॉल वाईड थी। एक रन के इजाफे ने एक बार फिर से भारत की धडकनें तेज कर दीं। आखिरी ओवर ने वर्ल्ड कप के इस फाइनल को बेहद रोमांचक बना दिया था। भारतीय टीम की निगाह मिसबाह पर लगी थी। भारत को तो विकेट चाहिए था या फिर उनके लिये जरूरी था कि बाकी बची गेंदों पर कोई रन ना बन सके। पाकिस्तान को जीतने के लिये अब महज पांच रन चाहिए थे।
आखिरी ओवर की तीन बॉल फेंकी जानी बाकी थी। मिसबाह स्ट्राइक पर एक बार फिर से अपने आक्रामक मूंड में दिखाई दे रहे थे। जोगिंदर ने अपनी बॉल के लिये दौडना शुरू किया एक बार फिर से धड़कनों का उफान तेज हो गया था। जब तक बॉल ने क्रिज पर टप्पा खाया मिसबाह अपनी पॉजीशन मे आ गए थे। मिसबाह ने गेंद को फाईनलेग से स्कूप करने के प्रयास किया तो वह उनकी सोच से ज्यादा उपर बल्ले पर आ गई। नतीजा यह हुआ कि गेंद एक बार फिर से विकेट के पीछे उंची उछल गई। वहां विकेट के पीछे फाईन लेग पर मौजूद श्रीसंत ने इसको आसानी से अपने हाथों में ले लिया। इस एक कैच ने भारत को जहां जीत दिला दी तो वहीं पाकिस्तान को पहले टी-20 विश्व कप में हार देखनी पड़ी। श्रीसंत के हाथों में कैच जाने से पहले मिसबाह अपना दूसरा रन पूरा करने वाले थे। जैसे ही श्रीसंत के हाथों में बॉल पड़ी वहीं मिसबाह अपने को रोक नहीं पाए। इस कैच के साथ ही मिसबाह अपने बल्ले के सहारे पूरी क्रीज पर अकेले बेहद मायूस दिखाई दे रहे थे।
दूसरे छोर पर मौजूद आसिफ, मिसबाह के पास पहुंचे और उन्हें दिलासा दी। इस एक शॉट ने पाकिस्तान की किस्मत ही बदल कर रख दी। धोनी ने इस मैच के साथ अपनी कप्तानी को मजबूती दी। मिसबाह को अपने इस शॉट की उम्मीद नहीं थी। यह शॉट मिसबाह के लिये कभी ना भूलने वाला शॉट रहा। हाल ही में दिल्ली में हुए सुई नोर्दन गैस और दिल्ली के बीच हुए मैच के दौरान मिसबाह ने यह बात मानी कि यह शॉट उनके जीवन का ना भूलने वाला शॉट रहा। मगर मिसबाह को इस शॉट को लेने के लिये टीम के किसी सदस्य ने उन्हें दोष नहीं दिया। इस वर्ल्डकप को जीतने के साथ ही भारत ने अपने को वर्ल्ड चैंपियन बनाने का सपना भी संजो लिया।