अपने साथी खिलाडियों की बाहों में में बैठे अनिल कुंबले के चेहरे की मुस्कान उनकी इस विदाई समारोह की पूरी तरह से हकदार थी। यह विदाई उस जंबो की थी जिसने अपने दम पर भारत को कई बार जीत दिलाई थी। भारतीय क्रिकेट खिलाडियों ने जब इस विशाल दिलवाले जंबो को अलविदा कहा तो जंबो की आंखें भी कहीं छलक आंई।
कमल कान्त वर्मा
फिरोजशाह कोटला के मैदान की घड़ी में अभी करीब 3:05 मिनट का समय रहा होगा। मैदान में कुछ सन्नाटा छाया था। भारतीय खिलाडी कतार में खडे होकर किसी का इंतजार कर रहे थे। अचानक माहौल बदला और तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा स्टेडियम गूंज उठा। जिसका खिलाडि़यों को इंतजार था वह शख्स पवेलियन से निकलकर मैदान की तरफ बढ़ रहा था। यह थे भारतीय टेस्ट टीम के कप्तान अनिल कुंबले। प्यार से जंबों के नाम से मशहूर इससे पहले इसी फिरोजशाह कोटला मैदान पर अपनी रिटायरमेंट का ऐलान कुछ देर पहले ही कर चुके थे। ऐसी विदाई की उम्मीद शायद ही किसी भारतीय खिलाड़ी ने की हो। भारतीय क्रिकेट में विकेट के बादशाह को जो विदाई मिली वह शायद ही इससे पहले किसी को मिली हो। यही था जंबो का रूतबा। भारतीय क्रिकेट के इतिहास में पहला मौका था जब किसी खिलाड़ी और कप्तान ने इस तरह से मैदान पर अपनी रिटायरमेंट का ऐलान किया हो। यह पल भारतीय टीम के लिये भावुकता से भरा था। वह एक ऐसे खिलाडी को विदाई दे रहे थे जो अपने अकेले के दम पर भारतीय टीम को जीत का सहरा पहनाने की हिम्मत रखता था।
1990 में अपने करियर का आगाज करने वाले अनिल कुंबले ने जब अपनी आंखों पर चश्मा लगा कर गेंदबाजी संभाली थी तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह शख्स 18 साल तक क्रिकेट से जुड़ा रहकर इतनी बुलंदियों को छू लेगा। चेहरे पर कुछ दमदार मुंछे अनिल कुंबले की पहचान हुआ करती थी। मगर पहले चश्मा गायब हुआ फिर मूंछे और सामनें था अनिल कुंबले का एक नया रूप एक नया नाम जंबो। भला कौन भूल सकता है कुंबले के वो दस विकेट जो इसी मैदान पर पाकिस्तान के खिलाफ उन्होंने लिये थे। यह भारत के लिये पहला मौका था जब किसी भारतीय ने एक ही पारी में दस विकेट लिये हों। जिम लेकर के 1956 में बनाए रिकार्ड को तोड़ने वाले जंबो दुनिया के दूसरे ऐसे खिलाड़ी बने जिसने एक ही पारी में इतनी विकेट ली हों। तभी तो जंबो जंबो हैं। आज भी कुंबले की विदाई का गवाह यही मैदान बना। शायद इसकी वजह उनकी चोट या फिर वही दस विकेट रहे हों। अजहर की कप्तानी में इसी फिरोजशाह कोटला मैदान पर कुंबले ने पाकिस्तान के खिलाफ दस विकेट लेकर जो इतिहास रचा वह आज भी कायम है। इस खिलाड़ी की विकेट की भूख कभी कम होती दिखाई नहीं दी।
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उनकी सबसे ज्यादा विकेट रहीं हैं। 2004 में सिडनी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उन्होंने एक ही पारी में आठ विकेट चटकाई थीं। 619 टेस्ट विकेट अपनी झोली में डालने वाले कुंबले के नाम कई रिकॉर्ड दर्ज है। कुंबले ने क्रिकेट को अपना सौ फिसदी प्रदर्शन दिया है। भला वेस्टइंडीज की वह पारी कौन भूल सकता है जब कुंबले अपना जबड़ा टूटने के बाद मुंह पर पटटी बांधकर मैदान पर आए थे और लारा का विकेट ले उड़े थे। मुंह खुलने में दर्द का एहसास उनके चेहरे पर था फिर भी उनके चेहरे से विकेट लेने की खुशी हटी नहीं थी। फिरोजशाह का यह तीसरा टेस्ट मैच भी कुछ ऐसा ही रहा जब कभी कंधे के दर्द से कुंबले को बाहर बैठना पड़ा तो कभी उंगली के फट जाने के कारण मैदान से मजबूरन जाना पड़ा। मगर इन सभी के बाद टीम में शामिल होकर टीम की हौंसला अफजाई करना वह कभी नहीं भूले तभी तो उंगली में ग्यारह टांके लगने के बाद भी मैदान में आकर उन्होंने ना सिर्फ बॉंलिंग ही की बल्कि कैच भी लपका बिना यह परवाह किये कि डॉक्टर ने उन्हें गेंदबाजी करने से मना किया है। यह जज्बा जंबो का ही हो सकता है।
भारत में उनकी बराबरी करने वाला कोई गेदबाज नहीं है। कुंबले ने जिन खिलाडियों के साथ अपना सफर शुरू किया था वह भले ही आज मैदान से बाहर हों मगर उनकी गेंदबाजी का कायल हर कोई है। फिर चाहे वह अहजर, कपिल, रविशाश्त्री हों या कोई और। फिरोजशाह के मैदान पर आज का नजारा जंबो के लिये हमेशा यादगार बनकर उनके दिल और दिमाग में बसा रहेगा। अपनी बॉलिंग में बेहद आक्रामक दिखाई देने वाले कुंबले अपने स्वभाव से बेहद नरम हैं। इस नरम दिल स्वभाव वाले व्यक्तित्व को पूरी दुनिया में क्रिकेट खिलाड़ी बेहद प्यार करते हैं। अब जब क्रिकेट के मैदान पर दर्शक उनकी बॉलिंग का जादू नहीं देख पाएंगे तो एक कमी तो जरूर रहेगी ही। जंबो ने अपने प्रदर्शन के दम पर सबसे ज्यादा बार भारत को जीत दिलाई है। दुनिया में सबसे ज्यादा टेस्ट विकेट लेने वाले कुल तीन खिलाडियों में जंबो तीसरे नम्बर पर है। कुंबले के रिकॉर्ड की बराबरी करना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिये किसी भी खिलाड़ी को कुंबले ही बनना होगा, तभी वह इसको अंजाम दे सकेगा। अपने इस आखिरी मैच के बाद उनके इस विदाई समारोह में ना सिर्फ वहां मौजूद खिलाड़ी शामिल हुए बल्कि पूरे खेल प्रेमी इसमें शामिल थे। मैदान में अपनी साथी खिलाडियों की बाहों पर बैठे जंबो का हर दर्शक ने खडे होकर अभिवादन किया और उनके योगदान को सराहा।
कमल कान्त वर्मा
फिरोजशाह कोटला के मैदान की घड़ी में अभी करीब 3:05 मिनट का समय रहा होगा। मैदान में कुछ सन्नाटा छाया था। भारतीय खिलाडी कतार में खडे होकर किसी का इंतजार कर रहे थे। अचानक माहौल बदला और तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा स्टेडियम गूंज उठा। जिसका खिलाडि़यों को इंतजार था वह शख्स पवेलियन से निकलकर मैदान की तरफ बढ़ रहा था। यह थे भारतीय टेस्ट टीम के कप्तान अनिल कुंबले। प्यार से जंबों के नाम से मशहूर इससे पहले इसी फिरोजशाह कोटला मैदान पर अपनी रिटायरमेंट का ऐलान कुछ देर पहले ही कर चुके थे। ऐसी विदाई की उम्मीद शायद ही किसी भारतीय खिलाड़ी ने की हो। भारतीय क्रिकेट में विकेट के बादशाह को जो विदाई मिली वह शायद ही इससे पहले किसी को मिली हो। यही था जंबो का रूतबा। भारतीय क्रिकेट के इतिहास में पहला मौका था जब किसी खिलाड़ी और कप्तान ने इस तरह से मैदान पर अपनी रिटायरमेंट का ऐलान किया हो। यह पल भारतीय टीम के लिये भावुकता से भरा था। वह एक ऐसे खिलाडी को विदाई दे रहे थे जो अपने अकेले के दम पर भारतीय टीम को जीत का सहरा पहनाने की हिम्मत रखता था।
1990 में अपने करियर का आगाज करने वाले अनिल कुंबले ने जब अपनी आंखों पर चश्मा लगा कर गेंदबाजी संभाली थी तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह शख्स 18 साल तक क्रिकेट से जुड़ा रहकर इतनी बुलंदियों को छू लेगा। चेहरे पर कुछ दमदार मुंछे अनिल कुंबले की पहचान हुआ करती थी। मगर पहले चश्मा गायब हुआ फिर मूंछे और सामनें था अनिल कुंबले का एक नया रूप एक नया नाम जंबो। भला कौन भूल सकता है कुंबले के वो दस विकेट जो इसी मैदान पर पाकिस्तान के खिलाफ उन्होंने लिये थे। यह भारत के लिये पहला मौका था जब किसी भारतीय ने एक ही पारी में दस विकेट लिये हों। जिम लेकर के 1956 में बनाए रिकार्ड को तोड़ने वाले जंबो दुनिया के दूसरे ऐसे खिलाड़ी बने जिसने एक ही पारी में इतनी विकेट ली हों। तभी तो जंबो जंबो हैं। आज भी कुंबले की विदाई का गवाह यही मैदान बना। शायद इसकी वजह उनकी चोट या फिर वही दस विकेट रहे हों। अजहर की कप्तानी में इसी फिरोजशाह कोटला मैदान पर कुंबले ने पाकिस्तान के खिलाफ दस विकेट लेकर जो इतिहास रचा वह आज भी कायम है। इस खिलाड़ी की विकेट की भूख कभी कम होती दिखाई नहीं दी।
ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उनकी सबसे ज्यादा विकेट रहीं हैं। 2004 में सिडनी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उन्होंने एक ही पारी में आठ विकेट चटकाई थीं। 619 टेस्ट विकेट अपनी झोली में डालने वाले कुंबले के नाम कई रिकॉर्ड दर्ज है। कुंबले ने क्रिकेट को अपना सौ फिसदी प्रदर्शन दिया है। भला वेस्टइंडीज की वह पारी कौन भूल सकता है जब कुंबले अपना जबड़ा टूटने के बाद मुंह पर पटटी बांधकर मैदान पर आए थे और लारा का विकेट ले उड़े थे। मुंह खुलने में दर्द का एहसास उनके चेहरे पर था फिर भी उनके चेहरे से विकेट लेने की खुशी हटी नहीं थी। फिरोजशाह का यह तीसरा टेस्ट मैच भी कुछ ऐसा ही रहा जब कभी कंधे के दर्द से कुंबले को बाहर बैठना पड़ा तो कभी उंगली के फट जाने के कारण मैदान से मजबूरन जाना पड़ा। मगर इन सभी के बाद टीम में शामिल होकर टीम की हौंसला अफजाई करना वह कभी नहीं भूले तभी तो उंगली में ग्यारह टांके लगने के बाद भी मैदान में आकर उन्होंने ना सिर्फ बॉंलिंग ही की बल्कि कैच भी लपका बिना यह परवाह किये कि डॉक्टर ने उन्हें गेंदबाजी करने से मना किया है। यह जज्बा जंबो का ही हो सकता है।
भारत में उनकी बराबरी करने वाला कोई गेदबाज नहीं है। कुंबले ने जिन खिलाडियों के साथ अपना सफर शुरू किया था वह भले ही आज मैदान से बाहर हों मगर उनकी गेंदबाजी का कायल हर कोई है। फिर चाहे वह अहजर, कपिल, रविशाश्त्री हों या कोई और। फिरोजशाह के मैदान पर आज का नजारा जंबो के लिये हमेशा यादगार बनकर उनके दिल और दिमाग में बसा रहेगा। अपनी बॉलिंग में बेहद आक्रामक दिखाई देने वाले कुंबले अपने स्वभाव से बेहद नरम हैं। इस नरम दिल स्वभाव वाले व्यक्तित्व को पूरी दुनिया में क्रिकेट खिलाड़ी बेहद प्यार करते हैं। अब जब क्रिकेट के मैदान पर दर्शक उनकी बॉलिंग का जादू नहीं देख पाएंगे तो एक कमी तो जरूर रहेगी ही। जंबो ने अपने प्रदर्शन के दम पर सबसे ज्यादा बार भारत को जीत दिलाई है। दुनिया में सबसे ज्यादा टेस्ट विकेट लेने वाले कुल तीन खिलाडियों में जंबो तीसरे नम्बर पर है। कुंबले के रिकॉर्ड की बराबरी करना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिये किसी भी खिलाड़ी को कुंबले ही बनना होगा, तभी वह इसको अंजाम दे सकेगा। अपने इस आखिरी मैच के बाद उनके इस विदाई समारोह में ना सिर्फ वहां मौजूद खिलाड़ी शामिल हुए बल्कि पूरे खेल प्रेमी इसमें शामिल थे। मैदान में अपनी साथी खिलाडियों की बाहों पर बैठे जंबो का हर दर्शक ने खडे होकर अभिवादन किया और उनके योगदान को सराहा।
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