भई रोते चिल्लाते काहे हो। जो हो गया सो हो गया। हम तो कहते हैं कि पानी फेरिये तमाम बातों पर। काहे को गोरों पर हर बार इसी तरह का लांछन लगाते हैं। यदि वहां नहीं भी आए तो क्या यहां तो आ ही रहे हैं। आने दिजिए। काहे को डराते हैं कि यहां भी हमारी ही सिचुवेशन है।
कमल कान्त वर्मा
बम की गूंज तो हर जगह एक सी होती है, फिर क्या भारत और पाकिस्तान। आखिर मरने वाले इंसानों में क्या फर्क हो सकता है। सिवाय इसके की कोई भारत में बम विस्फोट की भेंट चढे तो कोई पाकिस्तान में। माफ करना भई। यह हम नहीं कह रहे हैं बल्कि यह कहनें वाले पाकिस्तानी क्रिकेटर इंजमाम उल हक हैं। तो भई अब हम क्या करें। अब इंजमाम को कौन समझाए कि जहां मक्खी के छींकनें से ही शोर होकर दहशत फैल जाती हो वहां उन लोगों के लिये बम विस्फोट कोई साधारण घटना नहीं है।
उनके लिये यह साधारण घटना हो सकती है कि उनके स्कूलों में स्कूल के बच्चे गोली चला दें। मगर बम। ना बाबा ना। और फिर भाई इंजमाम यदि तुम्हें याद हो तो चैंपियंस ट्राफी भी इन्हीं बम विस्फोट की ही भेंट चढ़ी थी। ना चाहने वालों ने चैंपियंस ट्राफी में ही बम लगा दिया। अब तो गुस्सा मत करो भाई। भाई तुम जरा उन खिलाडियों की तो सोचो। उनकी मानसिक हालत के बारे में थोडा तो सोचो। मगर हमारे उपर उंगली मत उठाना। अब ये आस्ट्रेलिया की मर्जी है कि वह कहां खेलें कहां नहीं। उनकी मर्जी होगी तो वो गली में भी खेल लेंगे। आखिर गोरे हैं। ये बात याद रखो। इंजू भाई एक काम करो।
तुम हमें बुला लो हम तो एक ही थैली के चटटे बटटे हैं। हम पर क्या फर्क पड़ता है इन बम विस्फोटों का। तुम्हें तो पता है कि हम बमों के साए में खेल खेलते हैं। अब हम पॉलिटिशियन तो हैं नहीं। होते तो कुछ और ही बात होती। खैर...। छोडो...। जाने दो। एक नेक सलाह तो हमारी है यदि तुम मानों तो। तुम्हारे यहां पर मौजूद दाउद से यदि तुम मदद लो तो वो जरूर कुछ कर सकता है। आखिर वो अख्खी कंट्री का भाई है। उसकी बात कोई नहीं टालेगा। और यदि किसी ने कोशिश की तो हम हैं ना। हम बताएंगे की भाई क्या चीज है।
वैसे हमारा मानना है कि ज्यादा टेनशन मत लो। टेनशन लेने का नहीं देने का, क्या। भई अब क्या कहें हमारे यहां से तो चैंपियंस ट्राफी पर बीसीसीआई ने हर वक्त तुम्हारा ही साथ दिया था। मगर अब...। कुछ नहीं कहा जा सकता।
कमल कान्त वर्मा
बम की गूंज तो हर जगह एक सी होती है, फिर क्या भारत और पाकिस्तान। आखिर मरने वाले इंसानों में क्या फर्क हो सकता है। सिवाय इसके की कोई भारत में बम विस्फोट की भेंट चढे तो कोई पाकिस्तान में। माफ करना भई। यह हम नहीं कह रहे हैं बल्कि यह कहनें वाले पाकिस्तानी क्रिकेटर इंजमाम उल हक हैं। तो भई अब हम क्या करें। अब इंजमाम को कौन समझाए कि जहां मक्खी के छींकनें से ही शोर होकर दहशत फैल जाती हो वहां उन लोगों के लिये बम विस्फोट कोई साधारण घटना नहीं है।
उनके लिये यह साधारण घटना हो सकती है कि उनके स्कूलों में स्कूल के बच्चे गोली चला दें। मगर बम। ना बाबा ना। और फिर भाई इंजमाम यदि तुम्हें याद हो तो चैंपियंस ट्राफी भी इन्हीं बम विस्फोट की ही भेंट चढ़ी थी। ना चाहने वालों ने चैंपियंस ट्राफी में ही बम लगा दिया। अब तो गुस्सा मत करो भाई। भाई तुम जरा उन खिलाडियों की तो सोचो। उनकी मानसिक हालत के बारे में थोडा तो सोचो। मगर हमारे उपर उंगली मत उठाना। अब ये आस्ट्रेलिया की मर्जी है कि वह कहां खेलें कहां नहीं। उनकी मर्जी होगी तो वो गली में भी खेल लेंगे। आखिर गोरे हैं। ये बात याद रखो। इंजू भाई एक काम करो।
तुम हमें बुला लो हम तो एक ही थैली के चटटे बटटे हैं। हम पर क्या फर्क पड़ता है इन बम विस्फोटों का। तुम्हें तो पता है कि हम बमों के साए में खेल खेलते हैं। अब हम पॉलिटिशियन तो हैं नहीं। होते तो कुछ और ही बात होती। खैर...। छोडो...। जाने दो। एक नेक सलाह तो हमारी है यदि तुम मानों तो। तुम्हारे यहां पर मौजूद दाउद से यदि तुम मदद लो तो वो जरूर कुछ कर सकता है। आखिर वो अख्खी कंट्री का भाई है। उसकी बात कोई नहीं टालेगा। और यदि किसी ने कोशिश की तो हम हैं ना। हम बताएंगे की भाई क्या चीज है।
वैसे हमारा मानना है कि ज्यादा टेनशन मत लो। टेनशन लेने का नहीं देने का, क्या। भई अब क्या कहें हमारे यहां से तो चैंपियंस ट्राफी पर बीसीसीआई ने हर वक्त तुम्हारा ही साथ दिया था। मगर अब...। कुछ नहीं कहा जा सकता।
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